अलीगढ़ :
मंगलायतन विश्वविद्यालय के मुख्य सभागार में शुक्रवार को अतिथि व्याख्यान का आयोजन किया गया। व्याख्यान का विषय बुद्धिशीलता था। कार्यक्रम को वरिष्ठ पत्रकार व आईआईटी, रुड़की के ईएमएमआरसी के निदेशक राजकुमार भारद्वाज ने संबोधित किया। उन्होंने कहा कि चाणक्य जैसा गुरु चंद्रगुप्त की प्रतिभा को पहचान कर उसे सम्राट बना देता है उस देश की अपेक्षा सबसे ज्यादा शिक्षक से होती हैं। आज उस देश में शिक्षक व शिक्षा की क्या भूमिका है? जब शिक्षकों की कई पीढ़िया खत्म हो जाती है तब महर्षि ओरविंदो, स्वामी रामतीर्थ, भगवान महावीर जैन, गौतम बुद्ध पैदा होते हैं।
शिक्षक को अब पहले जैसा सम्मान नहीं मिलता। प्रबंधन व शिक्षक के मध्य ऐसा तालमेल बनाने की आवश्यकता है कि शिक्षक को सम्मान मिले। उन्होंने अपने जीवन के संस्मरण सुनाते हुए कहा कि जब घर कच्चे थे तो आदमी पक्के थे . आज घर पक्के हैं लेकिन आदमी कच्चे हैं। हमें जो अवसर व संसाधन मिले हैं उसी में न्याय करना है। जब हम दूसरों के साथ न्याय करेंगे तो हमारे साथ भी न्याय होगा। उन्होंने बढ़ती पाश्चात्य संस्कृति पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि उस रिसर्च का कोई फायदा नहीं जिसका लाभ लोगों को न मिले। अच्छा नागरिक बनना व बनाना शिक्षक का लक्ष्य होना चाहिए।
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कुलपति प्रो. पीके दशोरा ने आभार व्यक्त करते हुए कहा कि देश में समस्याओं पर चिंतन मनन करने की आवश्यकता है। विश्वविद्यालयों का काम केवल उपाधि प्रदान करना नहीं है बल्कि विद्यार्थी के अंदर स्वतंत्र चिंतन की क्षमता पैदा करना है। परिस्थितियों का आकलन कर सही निर्णय लेने की क्षमता विकसित करना और परिवर्तन लाने की स्थिति पैदा करना विश्वविद्यालयों का काम है। कुलपति ने अतिथि को स्मृति चिन्ह भेंट कर सम्मानित किया। संचालन श्वेता भारद्वाज ने किया। इस अवसर पर प्रति कुलपति प्रो. सिद्दी वीरेशम, कुलसचिव बिग्रे. समरवीर सिंह, परीक्षा नियंत्रक प्रो. दिनेश शर्मा, प्रो. जयंतीलाल जैन, प्रो. रविकांत, प्रो. अब्दुल वदूद, प्रो. अशोक पुरोहित, प्रो. प्रमोद कुमार, प्रो. राजीव शर्मा, प्रो. सिद्धार्थ जैन, डा. संतोष गौतम, डा. पीसी शुक्ला, प्रशासनिक अधिकारी गोपाल राजपूत, लव मित्तल, डा. पूनम रानी आदि मौजूद रहे ।