अलीगढ़ : युवती की हत्या कर शव जंगल मे फेंका, हत्यारे फरार ? जानिए, डॉक्टर कफील मामले में अब क्या होगा ?

उत्तरप्रदेश के जिला अलीगढ़ के थाना जवां इलाके के गांव भटोटी के जंगल में 20 वर्षीय युवती का शव मिलने से खलबली मच गई। ग्रामीण मौके पर एकत्र हो गए। खबर पाकर इलाका पुलिस मौके पर पहुंच गई और शव को अपने कब्जे में लेकर मोर्चरी भिजवाया है।

आशंका जताई जा रहा है कि हत्यारों ने युवती की हत्या कर शव को यहां फेंका होगा। मृतका नीला लोअर व लाल टॉप व लाल ही दुपट्टा पहने है। उसके बाएं हाथ में मोतियों की राखी बंधी हुई थी। राहगीरों ने शनिवार को गांव भटोटी के पास सड़क के जंगल में युवती का शव पड़ा देखा। ग्रामीणों ने मामले की सूचना पुलिस कन्ट्रोल रूम को दी। पुलिस ने मौके पर पहुंचकर युवती के शव की शिनाख्त कराने का प्रयास किया। लेकिन उसकी शिनाख्त नहीं हो सकी। पुलिस ने शव को कब्जे में लेकर 72 घण्टे के लिए मोर्चरी में रखवा दिया है। वहीं, पुलिस मामले की जांच पड़ताल में जुटी है।

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डा. कफील को नहीं मिलेगा लाभ, मई में मिल गई थी अभियोजन की स्वीकृत 

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने बीआरडी मेडिकल कालेज गोरखपुर के डॉक्टर कफील अहमद खान को राहत दी है। उन्हेंं पुलिस की तकनीकी प्रक्रिया में खामी का लाभ मिला है। कोर्ट ने सरकार से अभियोजन चलाने की अनुमति लिए बगैर चार्जशीट पर सीजेएम अलीगढ़ द्वारा संज्ञान लेने की कार्रवाई रद कर दी है। सरकार की अभियोजन चलाने की अनुमति के बाद ही सीजेएम को नियमानुसार कार्रवाई के लिए पत्रावली वापस भेज दी है। लेकिन, अलीगढ़ पुलिस ने मई में ही अभियोजन स्वीकृति लेने का दावा किया है। पुलिस के मुताबिक, कफील को कोई लाभ प्राप्त नहीं होगा।

यह आदेश न्यायमूर्ति गौतम चौधरी ने डॉक्टर कफील खान की याचिका पर दिया है। याचिका पर वरिष्ठ अधिवक्ता दिलीप कुमार, अधिवक्ता मनीष कुमार सिंह व शांभवी शुक्ला तथा राज्य सरकार के अपर महाधिवक्ता मनीष गोयल तथा अपर शासकीय अधिवक्ता पतंजलि मिश्र ने पक्ष रखा। याची के खिलाफ सीएए के विरोध में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में आयोजित सभा में भड़काऊ व देश विरोधी भाषण देने के आरोप में मुकदमा दर्ज कराया।

 

पुलिस ने चार्जशीट दाखिल की और सीजेएम ने रिपोर्ट पर संज्ञान भी ले लिया। उसकी वैधता को चुनौती दी गई थी। याची के अधिवक्ता का कहना था कि दंड प्रक्रिया संहिता की धारा-197 के तहत लोकसेवक के विरुद्ध बिना सरकार की अनुमति आपराधिक केस नहीं चलाया जा सकता। मजिस्ट्रेट का आदेश सुप्रीम कोर्ट व कानूनी उपबंधों के खिलाफ होने के कारण रद किया जाय। सरकार की तरफ से कहा गया कि आरोप निॢमत करते समय यदि अभियोजन चलाने की अनुमति न मिलती तो कार्रवाई रद की जा सकती है। अभी संज्ञान लेने के आदेश के खिलाफ याचिका पोषणीय नहीं है, किंतु कोर्ट ने बिना सरकार की अनुमति लिए मजिस्ट्रेट द्वारा संज्ञान लेने के आदेश को रद्द कर दिया है।

इधर, सीओ तृतीय श्वेताभ पांडेय ने बताया कि भड़काऊ भाषण देने के मामले में वर्ष 2019 में डॉक्टर कफील के खिलाफ मुकदमा दर्ज हुआ था। 16 मार्च 2020 को चार्जशीट दाखिल की गई थी। आरोपी के खिलाफ अभियोजन स्वीकृति 27 मई 2021 को ले ली गई थी। ऐसे में वैधानिक कार्रवाई व न्यायिक प्रक्रिया के लिए अभियोजन स्वीकृति को सीजेएम के समक्ष दोबारा प्रस्तुत किया जाएगा।

 

 

 

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