एएमयू वीसी ने पुस्तकों का विमोचन किया
अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर तारिक मंसूर ने अपने कार्यालय में एक विशेष समारोह में हिन्दी की जानी-मानी लेखिका और कवयित्री डा पुष्पिता अवस्थी द्वारा लिखित दो पुस्तकों का विमोचन किया, जिनमें ‘अहिंसा-स्वर, अहिंसा की प्रतिध्वनि‘ और ‘अलग भावनाएँ‘ शामिल हैं। इस दौरान डीएस डबल्यू प्रोफेसर अब्दुल अलीम एवं हिंदी विभाग के वर्तमान विभागाध्यक्ष प्रोफेसर एम आशिक अली भी मौजूद रहे।
डा अवस्थी, अध्यक्ष, हिंदी यूनिवर्स फाउंडेशन, नीदरलैंड और अध्यक्ष, आचार्य कुल, वर्धा, भारत ने सूरीनाम और नीदरलैंड और उनकी संस्कृति और साहित्य पर आधारित कई पुस्तकें लिखी हैं।
प्रोफेसर मंसूर ने उनके लेखन की सराहना की, जो मुख्य रूप से बंधुआ मजदूरों के रूप में विदेशों में प्रवास करने वाले प्रवासी भारतीयों से संबंधित है। प्रोफेसर मंसूर ने कहा कि उन्होंने हिंदी में कविता और गद्य के माध्यम से भारतीय डायस्पोरा के जीवन और आकांक्षाओं को चित्रित किया है।
संतों की वाणी लोकजीवन से जुड़ी हुई है-प्रो. मोहम्मद गुलरेज
अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के आधुनिक भारतीय भाषा विभाग के मराठी अनुभाग और पंजाबी अनुभाग एवं उत्तर प्रदेश पंजाबी अकादमी, लखनऊ के संयुक्त तत्वावधान में आजादी का अमृत महोत्सव के अवसर पर “संत साहित्य के मूल्य, सामाजिक चेतना और प्रासंगिकता’’ इस विषय पर द्वि-दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी के समापन समारोह को संबोधित करते हुए सहकुलपति मुख्य अतिथि प्रोफेसर मोहम्मद गुलरेज ने कहा कि “संत साहित्य मानव जीवन का उद्धार करने वाला साहित्य है। संतों की वाणी लोकजीवन से जुड़ी हुई है। साहित्यिक मर्यादा की कसौटी पर संत साहित्य खरा उतरा है और मानव जीवन को बेहतर दिशा देता है।
उन्होंने कहा कि संत साहित्य का सामाजिक, धार्मिक, आर्थिक और मानवता वादी पक्ष आज भी प्रासंगिक है। निराशा और अंधकार में भटके हुए जनमानस को अपनी वाणी से मंत्रमुग्ध करने का कार्य भारतीय संतों ने ही किया है। भारतीय संत चाहे वे मराठी, पंजाबी, हिन्दी, गुजराती, कन्नड़, तमिल या अन्य भाषी हो उन्होंने जो कार्य किया है, वह आज भी प्रेरणादायी है। संत साहित्य की रचनाएँ आज समाज जीवन के लिए आवश्यक है। इस दृष्टि से देखा जाये तो संत साहित्य का महत्त्व जितना मध्यकाल में था उतना वर्तमान में प्रासंगिक है।
नेशनल फिल्म पुरस्कार से सम्मानित डॉ. परमजीत सिंह ने कहा कि, “संत कवियों ने सामाजिक धार्मिक क्षेत्र में व्याप्त परम्परागत मान्यताओं व रूढिवादी विचारधाराओं का कड़ा विरोध किया है। उन्होंने एक ऐसे समाज की कल्पना की, जो ऊँच-नीच की भावना से सर्वथा शून्य हो, जो हिन्दू-मुस्लिम के भेदभाव से ऊपर हो। उनकी वाणी आज के इस वैश्वीकरण के दौर में भी मानव मात्र को यह संदेश देती प्रतीत होती है कि हमें हर प्रकार के भेदभाव से ऊपर एक स्वस्थ समाज के निर्माण हेतु प्रयासरत रहना चाहिए।
सामाजिक विज्ञान संकाय के अधिष्ठाता प्रोफेसर मिर्जा असमेर बेग ने कहा कि रूढ़ियाँ और अंधविश्वास ऐसी मानवीय ग्रंथियाँ हैं जिनसे मानव विकास की प्रगति अवरुद्ध हो जाती है और विवेक शून्यता का जन्म होता है। ऐसे समय में संत-साहित्य में समानता के भाव, जातिवाद साम्प्रदायिकता जैसी अमानवीय समाज व्यवस्था का विरोध, सामाजिक व धार्मिक रूढ़ियों के प्रति विद्रोह व्यक्त हुआ है।
समापन सत्र की अध्यक्षता कर रहे राष्ट्रसंत तुकड़ोजी महाराज, नागपुर विश्वविद्यालय, नागपुर के मराठी विभाग प्रमुखप्रो. शेलेन्द्र लेंडे ने कहा कि, “भक्तिकालीन सामाजिक, सांस्कृतिक, धार्मिक एवं राजनीतिक परिस्थिति का परिणाम हम मध्ययुगीन भक्तिकालीन संत साहित्य पर हुआ है। भक्तिकाल में उच्च कोटी की काव्यरचना हुई है। इस काल का साहित्य अपने गुणों से परम शिखर पर पहंुच गया था। मध्ययुगीन काल के संतों ने लोकभाषा में काव्यरचनाए लिखी। इसीकारण जनमानस तक यह साहित्य पहुचा। संतों ने विभिन्न विषम परिस्थितियों का सामना कर अपना कार्य किया है। धर्म,जातिआदि के नाम पर समाज में हो रहे आडंबरों पर अपने विचार व्यक्त किये है।
विभाग के चेअरपर्सन प्रो. एम.ए. झरगर ने कहा कि, “संत कवि अपने युगीन परिवेश में फैली असंगतियों के विरूद्ध अपनी आवाज बुलन्द करते रहे। चाहे सामाजिक विसंगतियों हों, चाहे धार्मिक कुरीतियाँ हो, चाहे नैतिक विडम्बनाएँ हो। इन सब जटिलताओं को केन्द्र में रखकर जो विचार उन्होंने प्रसारित किए वे सटीक प्रतीत होते हैं।” कार्यक्रम का संचालन संगोष्ठी के डायरेक्टर डॉ. ताहेर पठान ने किया। संगोष्ठी के समन्वयक प्रो. क्रान्ति पाल ने संगोष्ठी का सारांश पेश कियाऔरप्रो. ए. नुजुम ने धन्यवाद् ज्ञापित किया।
मैनेजमेंट फैकल्टी में अतिरिक्त खेल सुविधाओं का लोकापर्ण
अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय की फैकल्टी ऑफ मैनेजमेंट स्टडीज एंड रिसर्च (एफएमएसआर) में शिक्षकों, शोधार्थियों और कर्मचारियों के लिए मौजूद खेल सुविधा में एक पूल टेबल गेम की वृद्धि की गयी है जो उन्हें अध्ययन एवं शोध की थकावट से निजात देने में सहायक होगा। मैनेजमेंट फैकल्टी विश्वविद्यालय का पहला ऐसा शैक्षणिक केंद्र बन गयी है जहां इनडोर खेल सुविधा उपलब्ध है, जिसमें टेबल टेनिस और कैरम जैसे खेल पहले से ही मौजूद हैं।
पूल टेबल गेम का उद्घाटन करते हुए प्रोफेसर सैयद अमजद अली रिजवी (सचिव, विश्वविद्यालय खेल समिति) ने छात्रों से अपनी पसंद के किसी भी खेल में रुचि विकसित करने का आग्रह किया क्योंकि इससे उन्हें एक स्वस्थ व्यक्तित्व विकसित करने में मदद मिलेगी।
इससे पूर्व, अतिथियों का स्वागत करते हुए, प्रोफेसर सलमा अहमद (डीन, एफएमएसआर) ने कहा कि खेल एक अद्भुत तनाव बस्टर है और मूड को बेहतर बनता है। यह खिलाडियों की मनोदशा को बेहतर बनता है और खेल में रूचि रखने वाले छात्रों के लिए प्रेरणा का काम करता है।
जेएन मेडिकल कालिज में विश्व टीबी दिवस मनाया गया
अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के जवाहरलाल नेहरू मेडिकल कॉलेज के टीबी और छाती रोग विभाग द्वारा विश्व टीबी दिवस के उपलक्ष में एक सीएमई-सह-जागरूकता अभियान का आयोजन किया गया।
उद्घाटन समारोह को संबोधित करते हुए, प्रोफेसर वीणा महेश्वरी (डीन, चिकित्सा संकाय) ने तपेदिक के बारे में जागरूकता पैदा करने और टीबी के प्रबंधन के बारे में चिकित्सकों को अपडेट करने के महत्व पर बात की।
विश्व टीबी दिवस की इस वर्ष की थीम, ‘यस वी कैन एंड टीबी‘ पर प्रकाश डालते हुए, प्रोफेसर राकेश भार्गव (प्रिंसिपल, जेएनएमसी) ने टीबी के विभिन्न स्वरूपों के इलाज के लिए जेएनएमसी में उपलब्ध विभिन्न सुविधाओं पर बात की। आयोजन प्रमुख और विभागाध्यक्ष, प्रोफेसर जुबैर अहमद ने प्रतिभागियों का स्वागत किया और विशेष रूप से कोविड-19 के प्रकोप के बाद टीबी की बढ़ती घटनाओं पर चिंता व्यक्त की।
उन्होंने कहा कि टीबी एण्ड चेस्ट ओपीडी में रोगी जागरूकता शिविर का आयोजन किया गया, जिसमें मरीजों को क्षय रोग के उपचार की जानकारी दी गई।
डब्ल्यूएचओ सलाहकार, डॉ उमर अकील ने ‘टीबी में नेक्स्टजेन सीक्वेंसिंग‘ पर एक व्याख्यान दिया।
आयोजन सचिव, डा इमराना मसूद ने ‘तपेदिक के प्रबंधन में हालिया नैदानिक तकनीकों‘ पर एक व्याख्यान दिया, जबकि डा उम्मुल बनीन ने ‘दवा प्रतिरोधी टीबी के लिए उपलब्ध विभिन्न उपचार आहार‘ पर बात की। डा नफीस अहमद ने ‘टीबी निवारक उपचार‘ पर एक व्याख्यान दिया।
भूविज्ञान विभाग के 24 छात्रों ने आईआईटी-गेट और आईआईटी-जेएएम परीक्षा उत्तीर्ण की
अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के भूविज्ञान विभाग के 24 छात्रों ने आईआईटी-गेट और आईआईटी-जैम परीक्षा 2023 में सफलता प्राप्त की है।
भूविज्ञान विभाग के अध्यक्ष, प्रो कु. फराहिम खान ने बताया कि 18 छात्रों ने आईईटी एण्ड गेट 2023 क्वालिफाई किया है, जिनमें आयशा नाज, अली हबीब अल्वी, अरीबा आरिफ, एजाज अहमद खान, फैसल, फराज अहमद, हिलाल अली, कुमैल अहमद, मोहम्मद आतिफ रजा, एम जावेद, मोहम्मद साकिब, मोईन खान, प्रशांत चैधरी, रामिश मेहदी, राशिद, रियाजुद्दीन, मो. शैबाज खान, और शारिक सुहैल शामिल हैं।
प्रो फराहीम के अनुसार रजत शर्मा, मो. अरबाज, मो. तलहा, शोएब खान, सिदरा इरम और मो. खलीक ने आईईटी एण्ड जेएएम परीक्षा 2023 उत्तीर्ण कर ली है।
उन्होंने सफल छात्रों को बधाई देते हुए कहा कि यह अन्य छात्रों के लिए भी प्रेरणा है।