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एएमयू में ‘जेंडर-रेस्पॉन्सिव बजटिंग’ पर कार्यशाला संपन्न

अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के उन्नत महिला अध्ययन केंद् द्वारा यूजीसी मानव संसाधन विकास केंद्र में जेंडर रिस्पॉन्सिव बजटिंग विषय पर आयोजित तीन दिवसीय राज्य स्तरीय कार्यशाला आज संपन्न हो गई। कार्यशाला में जेंडर रिस्पॉन्सिव प्लानिंग एंड बजटिंग विशेषज्ञों ने विभिन्न विश्वविद्यालयों, सरकारी कार्यालयों, पीएसयू, कॉरपोरेट सेक्टर और उत्तर प्रदेश स्थित गैर सरकारी संगठनों के प्रतिभागियों के साथ विशेषज्ञता एवं ज्ञान साझा किया।



मुख्य अतिथि, एएमयू रजिस्ट्रार, मोहम्मद इमरान (आईपीएस) ने कहा कि जेंडर-रेस्पॉन्सिव बजट का महत्व इस तथ्य से प्रमाणित है कि यह राष्ट्रीय और वैश्विक स्तर पर कानूनों, दस्तावेजों और रणनीतिक योजनाओं के अंदर लैंगिक समानता के उद्देश्यों को प्राप्त करने में मदद करता है। इस संबंध में, यह लैंगिक समानता को मुख्यधारा बनने में मदद करता है।

उन्होंने यह सुनिश्चित करने के लिए कि छात्राओं को उनकी शिक्षा की सुविधा के लिए आवश्यक बुनियादी ढाँचा प्रदान किया जाए, धन के जेंडर रेस्पॉन्सिव आवंटन के लिए बहुमूल्य सुझाव साझा किए और बताया कि जेंडर रेस्पॉन्सिव बजट का उपयोग सामाजिक सुधार लाने के लिए एक उपकरण के रूप में भी किया जा सकता है।

एएमयू रजिस्ट्रार ने सामाजिक क्षेत्रों को फंड आवंटन के प्रभाव को देखने के लिए प्रभाव आकलन का आह्वान किया। कार्यक्रम में मानद अतिथि के रूप में भाग लेते हुए यूजीसी एचआरडीसी की निदेशक, डॉ फ़ायज़ा अब्बासी ने जोर देकर कहा कि लैंगिक समानता के मुद्दों को नीतिगत गलियारों में लाना महत्वपूर्ण है क्योंकि इस तरह वे नीति निर्माताओं की चिंता का विषय बन जाते हैं।

बाद में मुख्य अतिथि व मानद अतिथि ने प्रतिभागियों को प्रमाण पत्र वितरित किए। उन्नत महिला अध्ययन केंद्र की निदेशक प्रोफेसर अज़रा मूसवी ने मानव विकास संस्थान, एनआईपीएफपी, संयुक्त राष्ट्र महिला और सीबीजीए, नई दिल्ली और महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के संसाधन व्यक्तियों को कार्यशाला आयोजित करने के लिए अनुदान देने के लिए धन्यवाद दिया।

उन्होंने लैंगिक समानता के सिद्धांत को सार्वजनिक वित्तपोषण प्रक्रियाओं और सार्वजनिक निरीक्षण निकायों में एकीकृत करने की आवश्यकता पर भी जोर दिया।कार्यशाला की समन्वयक डॉ शिवांगिनी टंडन ने कार्यक्रम का संचालन किया।

 

जेएनएमसी में एमबीबीएस 1997 बैच के पूर्व छात्रों ने सिल्वर जुबली री-यूनियन मनाया, पुरानी यादों को ताजा किया

अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के जवाहरलाल नेहरू मेडिकल कॉलेज के एमबीबीएस 1997 बैच के 80 पूर्व छात्रों ने पूर्ण उत्साह के साथ पुराने दिनों कि यादें ताज़ा कीं और 25 साल बाद अपनी मातृसंस्था को देखने और नए संबंध बनाने के लिए विश्वविद्यालय में इकट्ठा हुए। यहीं उन्होंने अपना एमबीबीएस कोर्स शुरू करने के लिए सबसे पहले सफेद कोट पहना था।



ज्ञात हो कि पूर्व छात्रों का 1997 बैच जेएनएमसी में अपनी रजत जयंती रीयूनियन ‘डेल्यूज-2022’ मना रहा है। इस बैच के छात्रों को सम्बोधित करते हुए एएमयू कुलपति प्रोफेसर तारिक़ मंसूर ने कहा कि शिक्षक और माता-पिता आपकी सफलता का जश्न मनाते हैं। वे आपकी उपलब्धियों से जुड़े हुए हैं क्योंकि उन्होंने अपना पूरा जीवन आशा जगाने, कल्पना को प्रज्वलित करने और आप के अंदर ज्ञान प्राप्ति कि रूचि जगाने में बिताया है। उन्होंने कहा कि यह देखकर मुझे बहुत खुशी हो रही है कि 1997 बैच के एमबीबीएस छात्र, जो अब अमेरिका, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात और देश के विभिन्न हिस्सों में सफल चिकित्सक के रूप में काम कर रहे हैं, अपनी व्यस्तता के बावजूद इस रीयूनियन के लिए समय निकाल पाए।

इस संस्था के राजदूत, परोपकारी, स्वयंसेवक और उद्योग भागीदार के रूप में हमारे पूर्व छात्रों ने इस विश्वविद्यालय की सफलता में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है और हमें उनकी उपलब्धियों पर गर्व है।

प्रो मंसूर ने कहा कि मुझे विश्वास है कि यह समारोह एक शानदार एवं सफल होगा और यहाँ पधारे सभी पूर्वछात्रों के अंदर जोश भरने का काम करेगा। कुलपति ने अमुवि में नए पाठ्यक्रमों और नए बुनियादी ढांचे के बारे में भी बात की और बताया कि जेएनएमसी समाज के सभी वर्गों को सस्ती स्वास्थ्य देखभाल कैसे प्रदान कर रहा है।

मेडिसिन फैकल्टी के डीन प्रोफेसर एम यू रब्बानी ने कहा कि इस पूर्व छात्र पुनर्मिलन ने न केवल एमबीबीएस 1997 बैच के छात्रों को इतने सालों के बाद एक-दूसरे से मिलने का अवसर प्रदान किया है, बल्कि यह उनके लिए उन विभिन्न परिवर्तनों को देखने का अवसर भी है जो इस संस्था में पिछले कई वर्षों में हुए हैं। हमें पूरी उम्मीद है कि यह अवसर विश्वविद्यालय और मेडिकल कॉलेज के साथ 1997 बैच के छात्रों के बंधन को और मजबूत करेगा।

जेएनएमसी के प्रधानाचार्य, प्रोफेसर राकेश भार्गव ने कहा कि अपने छात्र दिनों को याद करना और अनुभव और विशेषज्ञता साझा करना एक अलग अनुभव है। मुझे यकीन है कि इस आयोजन के लिए एकत्रित हुए पूर्व छात्र अपनी उपलब्धियों का अनुभव करने वाले वर्तमान छात्रों को आवश्यक मार्गदर्शन और परामर्श प्रदान करके अपनी मातृसंस्था को वापस देने के इच्छुक हैं।

अपने स्वागत भाषण में डॉ. नितिन वार्ष्णेय (सलाहकार, के के अस्पताल, अलीगढ़) ने कहा कि पुराने मित्रों से मिलना एक वरदान है। ये यादें हमेशा हमारे साथ रहेंगी। डॉ अतिका जावेद सिद्दीकी (नेत्र विज्ञान विभाग, जेएनएमसी) ने धन्यवाद ज्ञापित किया और फिर से मिलने और दोस्ती के बंधन को नवीनीकृत करने के वादे के साथ कार्यक्रम को समाप्त करने का आह्वान किया।

एमबीबीएस 1997 बैच के छात्र, डॉ ज़र्गाम जिया (अध्यक्ष, रेडियोलॉजी विभाग, किंग फैसल विशेषज्ञ अस्पताल और अनुसंधान केंद्र, सऊदी अरब) और ऐमन हैदर ने कार्यक्रम का संचालन किया। कार्यक्रम के आयोजन में कोषाध्यक्ष डा. उबैद ए सिद्दीकी, कार्यकारी समिति सदस्य डा. फरहा नसरीन, डा. आसिफा खान, डा. शाइस्ता जबीं, डा. शफीक अहमद चौहान, डा. एम ताहिर अली, डा. तौहीद व डा. ऐमन हैदर का सक्रिय योगदान रहा। कार्यक्रम में कोविड के दौरान स्वर्गलोक सिधारने वाले चिकित्सकों को दो मिनट का मौन धारण कर श्रद्वांजलि अर्पित की गई।

 

ऑनलाइन टीचिंग पर यूनिवर्सिटी एक्सटेंशन लेक्चर आयोजन

अलीगढ मुस्लिम विश्वविद्यालय के सेंटर ऑफ़ एडवांस्ड स्टडी, इतिहास विभाग द्वारा ‘इतिहास के ऑनलाइन शिक्षण में मुद्दे और परिप्रेक्ष्यः सीखने के प्रतिमान में बदलाव’ विषय पर विश्वविद्यालय विस्तार व्याख्यान का आयोजन किया गया। व्याख्यान प्रस्तुत करते हुए इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय, नई दिल्ली के सेवानिवृत्त शिक्षक, प्रोफेसर रवींद्र श्रीवास्तव ने कहा कि सार्वभौमिक सत्य के एक सेट के रूप में ज्ञान का विचार अब अर्थहीन हो चूका है। यह एक उद्देश्य नहीं बल्कि नेटवर्क और प्रवाह की एक श्रृंखला है।



अब विभिन्न विषयों के बीच की सीमाएँ समाप्त हो रही हैं और ज्ञान का प्रतिनिधित्व करने के पारंपरिक तरीके जैसे किताबें, अकादमिक पेपर आदि कम महत्वपूर्ण होते जा रहे हैं। शिक्षण इतिहास के विशेष संदर्भ में ऑनलाइन शिक्षण पर बोलते हुए प्रो. श्रीवास्तव ने कहा कि शिक्षण-प्रशिक्षण ज्ञान का परिवर्तन है। नई तकनीकों का शिक्षा के माध्यमों पर प्रभाव पड़ता है और प्रौद्योगिकी में बदलाव के साथ, शिक्षण और सीखने की प्रक्रिया में एक बड़ा बदलाव स्पष्ट है।

उन्होंने कहा कि यह क्वांटम बदलाव एक नई प्रणाली लेकर आया है और प्रौद्योगिकी में बदलाव के साथ अब शिक्षण का नजरिया ही बदल गया है। ज्ञान अब एक उत्पाद नहीं बल्कि एक प्रक्रिया है और इंटरनेट ने ज्ञान की प्रकृति को बदल दिया है। प्रो श्रीवास्तव ने कहा कि नई प्रौद्योगिकियां सीखने के गैर औद्योगिकीकरण को बढ़ावा दे रही हैं और वैज्ञानिक पद्धति परीक्षण योग्य परिकल्पनाओं के आसपास बनाई गई है। अब, नया ज्ञान बनाने के लिए डेटा सहसंबंध ‘पारंपरिक’ वैज्ञानिक दृष्टिकोण को प्रतिस्थापित कर सकता है।

इससे पूर्व विभागाध्यक्ष एवं समन्वयक, प्रोफेसर गुलफिशन खान ने वक्ता का परिचय दिया और उनकी अकादमिक उपलब्धियों पर प्रकाश डाला। उन्होंने अध्यक्षीय उद्बोधन भी दिया।

 

 

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