आपने रेलवे स्टेशन, बस स्टैंड व सार्वजनिक स्थानों पर बच्चों को भटकते हुए देखा होगा। इन बच्चों को घर पहुंचाने की जिम्मेदारी महानगर में बाल सहायता केन्द्र ने उठाई हुई है। पिछले एक साल में 87 बच्चों को चाइल्ड लाइन घर पहुंचा चुकी है। बच्चों के घर से भागकर आने का कारण काउंसलिंग में माता पिता की डांट, मनपसंद वस्तुओं की मांग पूरी न होना, अशिक्षा सामने आई है।
यूपी के मुरादाबाद रेलवे स्टेशन पर बाल सहायता केन्द्र का बूथ बनाया गया है। जहां चाइल्ड लाइन की टीम 24 घंटे तैनात रही है। चाइल्ड लाइन कोर्डिनेटर अतीक फारुखी ने बताया कि एक साल में 90 में से 87 बच्चों को घर पहुंचाने में सफलता पाई है। इनमें 58 बच्चे घर से भागे हुए पाए गए हैं। जो चौकाने वाला आंकड़ा है। सभी बच्चों को उनके परिवार से मिलाने में सफलता प्राप्त की है। इनमें से तीन बच्चे अभी चाइल्ड लाइन के पास हैं। इन बच्चों में सबसे ज्यादा ग्रामीण इलाकों तथा पड़ोसी राज्य से भी भागे हुए हैं। इनमे ओडिशा, बिहार, जम्मू कश्मीर, दिल्ली, उत्तराखंड के ज्यादातर बच्चे शामिल हैं। बच्चे के मिलने के बाद सबसे पहले उनकी काउंसिलिंग की जाती है। इसमें बच्चे यह बात खुद स्वीकार करते हैं कि अपनी मर्जी से, किसी साथी या अकेले ही घर से निकले हैं। इसके साथ ही उनके घर से निकलने का कारण माता-पिता की डांट, मनपसंद वस्तुएं न मिलना सहित अन्य सामने आएं हैं।
24 घंटे रहती है टीम…..
रेलवे चाइल्ड लाइन की टीम ट्रेनों में अकेले बच्चों की जांच करती है। चाइल्ड लाइन के नौ लोगों की टीम 24 घंटे काम करती है। इस टीम को तीन भागों में बांटा गया है, जो तीन शिफ्ट में कार्य करती है ।
सभी ट्रेनों को खंगालती है टीम…..
मुरादाबाद स्टेशन से कोई भी ट्रेन गुजरती है या फिर रुकती है तो उसे चाइल्ड लाइन की टीम उसमें जाकर ट्रेन को खंगालती है। जहां भी किसी बच्चे पर शंका होती है, उन्हें पूछताछ कर रेलवे चाइल्ड लाइन में आश्रय दिया जाता है। उन्हें आश्रय तब दिया जाता है, जब तक उन्हें सुरक्षित उनके परिजनों तक न पहुंचा दिया जाए।
चाइल्ड लाइन कोआर्डिनेटर अतीक फारुखी ने बताया कि
चाइल्ड लाइन की टीम लगातार ऐसे बच्चों की तलाश में रहती है, जो अकेले और घबराएं हुए होते हैं। फिर उन सभी बच्चों को पकड़कर उनकी काउंसलिंग की जाती है। जिसके बाद उनके माता-पिता से संपर्क कर उनके सुपुर्द किया जाता है। एक साल में 87 बच्चों को घर पहुंचाया गया है।