Amu News Today : प्रेमचंद जयन्ती पर संगोष्ठी संपन्न | the khabarilaal

 

प्रेमचंद जयन्ती पर संगोष्ठी संपन्न

जनवादी लेखक संघ, अलीगढ़ के तत्वावधान में प्रेमचंद जयंती के अवसर पर एक संगोष्ठी का आयोजन किया गया। इस अवसर पर जलेस सचिव एवं अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग के अध्यक्ष प्रो. आशिक़ बालौत ने प्रेमचंद और उर्द विभाग की प्रो. सीमा सग़ीर का स्मरण करते हुए उन्होंने प्रेमचंद साहित्य के महत्त्वपूर्ण उपलब्धियों और बिंदुओं को रेखांकित किया।

उन्होंने कहा कि प्रेमचंद का साहित्य वर्तमान संदर्भांे में भी प्रासंगिक है। उन्होंने मज़दूरों, महिलाओं और किसानों को शोषणतंत्र से मुक्ति दिलाने का प्रयास किया और उनके दुःख-दर्द को सामने लाने का कार्य किया। आज भी भारतीय समाज में स्त्री का अपमान किया जा रहा है। आए दिन हम उनके साथ अन्याय की खबरें पढ़ते रहते हैं। किसानों का भी शोषण किया जा रहा है। जब वो अपनी मांगों को लेकर अपना स्वर बुलंद करते हैं, तो ताकत के बल पर उनको दबाया जा रहा है।

हिन्दी विभाग के प्रो. शंभुनांथ तिवारी ने प्रेमचंद के साहित्य पर प्रकाश डालते हुए कहा कि मैं, प्राध्यापक की हैसियत से नहीं बल्कि पाठक की हैसियत से कह रहा हूँ कि प्रेमचंद हमारे लिए बहुत ख़ास हैं। प्रेमचंद उर्दू से हिंदी में आए और बराबर दोनों भाषाओं में लिखते रहे। वे, वास्तव में इंसानियत के अलंबरदार थे।

हिन्दी विभाग के अजय बिसारिया ने प्रेमचंद के साहित्य के महत्त्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि प्रेमचंद को जितनी हिंदीभाषी समाज और भारती संस्कृति की गहरी समझ थी उनती किसी को नहीं थी। इसीलिए वे भारतीय समाज और संस्कृति को चित्रित करने में कामयाब रहे। प्रेमचंद कहानीकार के तौर पर दुनिया के सर्वश्रेष्ठ कहानीकारों की पक्ति में होना चाहिए।

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अलीगढ़ के मशहूर कवि सुरेश कुमार ने कहा कि पाठ्यक्रम से इतर भी प्रेमचंद के साहित्य को पढ़ने के लिए प्रेरित किया जाना चाहिए, क्योंकि पाठ्यक्रम में उनका बहुत कम साहित्य पढ़ते है। उनके पूरे साहित्य को पढ़कर ही हम प्रेमचंद को भलीभाँति समझ सकते हैं।

प्रो. प्रेमकुमार ने चर्चा को आगे बढ़ाते हुऐ कहा कि प्रेमचंद को कैद करने का प्रयास किया जा रहा है। जनवादी लेखक संघ के अध्यक्ष प्रो. सग़ीर अफ़राहीम ने प्रेमचंद को हिंदी-उर्दू का मकबूल अदीब बताते हुए कहा कि वह एक इंसान-दोस्त साहित्यकार हैं। यही उनके साहित्य की ताक़त है। इस अवसर पर प्रो. अब्दुल अलीम (डी.एस.डब्ल्यू) प्रो. तारिक छतारी (उर्दू विभाग), रवेन्द्र पाण्डेय एवं शोधार्थीगण भी उपस्थित रहे।

 

 

 

 

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