दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन
अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के आधुनिक भारतीय भाषा विभाग द्वारा मराठी अनुभाग और पंजाबी अनुभाग एवं उत्तर प्रदेश पंजाबी अकादमी, लखनऊ के संयुक्त तत्वावधान में भारतीय भाषा उत्सव-2023 के अन्तर्गत गुरू नानक देव जी और संत नामदेव की जयन्ती के उपलक्ष्य में ’’श्री गुरू गं्रथ साहिब में दर्ज संत नामदेव की वाणी’’ विषय पर द्वि-दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया।

मुख्य अतिथि अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो.मोहम्मद गुलरेज ने श्री गुरू गं्रथ साहिब में दर्ज संत नामदेव की वाणी विषय पर विचार व्यक्त करते हुए कहा कि,’’मनुष्य की निस्वार्थ सेवा और निराकार का प्रेमपूर्ण चिंतन उनके जीवन का सार था।
कुलपति ने कहा कि गुरु ग्रंथ साहिब की संपूर्ण वाणी में उन मूल्यवान गुणों का अलग-अलग प्रकार से बहुत सुंदर वर्णन है जो वाणी का पाठ सुनने वाले के हृदय को शीतल और आनंदित करते हैं। उन्होंने कहा कि यह दुनिया का एकमात्र महान ग्रंथ है । जिसे गुरु का दर्जा प्राप्त है। यद्यपि गुरु ग्रंथ साहिब की मुख्य भाषा पंजाबी है, जो संत भाषा का रूप रखती है, परंतु विभिन्न क्षेत्रों से संबंधित होने के कारण, मराठी, बंगाली, संस्कृत, ब्रज, फारसी आदि का प्रभाव होने के कारण पूरी वाणी एक सुंदर भाषाई, बहुमूल्य सुगंध, अद्भुत सुंदरता और पवित्र निहितार्थों वाला गुलदस्ता है।
अतिथि के रूप में गुरू काशी विश्वविद्यालय, तलवण्डी साबो भठिण्डा, पंजाब के पूर्व अधिष्ठाता एवं शोध निदेशक प्रो. सतनाम सिंह जस्सल ने अपने वक्तव्य में कहा कि, ’’गुरू ग्रंथ साहिब पवित्र और महान ग्रंथ है जिसकी शिक्षाएँ अमर हैं। जिसे अन्य धर्म के लोग भी पूर्ण सम्मान देते हैं।
यह वह अध्यात्मिक शक्ति है जो लोगों को हर पल मार्ग दर्शन करती है। यह सिखों की वह अचार-संहिता है, जिसमें सचाई, शांति और सामुदायिक बन्धुत्व का संदेश है। उन्होंने कहा कि गुरूवाणी न केवल व्यक्ति को अच्छा इंसान बनाना सिखाती है बल्कि मूल्यवान ज्ञान भी प्रदान करती है। जो किसी एक धर्म या सम्प्रदाय या व्यक्ति विशेष को संबोधित नहीं करती है।
संत गाडगे बाबा अमरावती विश्वविद्यालय, अमरावती महाराष्ट्र की अधिष्ठाता एवं मराठी विभाग अध्यक्ष प्रो.मोना चिमोटेने कहा कि, ’’भारत विभिन्न भाषाओं और संस्कृतियों से भरा देश है और इनके बीच आपसी संबंध भी हैं। ये भाषाएँ और संस्कृतियाँ सैकड़ों वर्षों से अस्तित्व में हैं। इनका हजारों वर्षों से गठबंधन रहा है।
उन्होंने कहा कि भारतीय भाषा और संस्कृति के अंतर्संबंध का मुख्य आधार न केवल धार्मिक और सांस्कृतिक रहा है। बल्कि उससे भी अधिक यह सैद्धांतिक और दार्शनिक है। प्रो. मोना ने कहा कि मानवतावाद को नए सिरे से पहचानने और समझने की जरूरत है।
साहित्य अकादमी पुरुस्कार से सम्मानित, कवि तथा पंजाबी विभाग, दिल्ली विश्वविद्यालय, दिल्ली की डाॅ. वनिता ने कहा कि वर्तमान विश्व में प्रत्येक प्राणी में प्रचण्ड रूप से बस रहे काम क्रोध, लोभ, मोह और सबसे ऊपर अहंकार के दानव जो ब्रह्मंड में प्रदूषण, विकार और अनेकानेक समस्याएँ सांस्कृतिक, वैश्विक तथा आतंक का संचार कर रहे हैं, उनके बरक्स नाम भक्ति के जोर पर तथा प्रेमा भक्ति द्वारा जात-पात, वहमो-भरमो से निजात पाकर विश्व व्यापी मानवतावाद का परचम भी लहरा पायेंगे।
वसंतदादा प्रतिष्ठान संचलित जी.एस.एम. काॅलेज, कोंडावा, पुणे के प्राचार्य डाॅ॰ प्रमोद बोत्रे साहब ने कहा कि, ’’संत ज्ञानदेवजी द्वारा रचित ’ज्ञानेश्वरी’ के अभंग नामदेवजी को बहोत प्रिय थे। संत नामदेवजी की सोच जीवनचर्चा और भाषाशैली पर इनका प्रभाव पड़ा।
वीडियो न्यूज़ :- https://youtu.be/tjgkZeev2ao?si=xyJUj281T0K7HQeD
उत्तर प्रदेश पंजाबी अकादमी, भाषा विभाग, उत्तर प्रदेश सरकार के जनसंपर्क अधिकारी अरविंद नारायण मिश्रा ने कहा कि, ’’गुरू ग्रंथ साहिब की शाश्वत वाणी का महत्त्व मध्ययुग में ही नहीं, भारतीय संस्कृति के लिए हर युग में रहेगा।
उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता करते हुए कला संकाय के अधिष्ठाता प्रो. आरिफ नजीर ने कहा कि, ’’भक्ति लहर के दौरान समाज में जाति व्यवस्था के अन्तर्गत ऊँच-नीच का अंतर अधिक था। भक्त कवियों ने मानव विरोधी मूल्यों के सुधार के लिए लोगों को चेतन किया। भक्ति आंदोलन का मूख्य जोर अध्यात्मिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, अनैतिक मूल्यों को ऊपर उठाना था। भक्त नामदेव जी इस आंदोलन के अग्रदूतों में से एक थे।’’
ये भी पढ़े : – https://thekhabarilaal.com/aligarh-news-inter-school-program-organized-on-the-occasion-of-sir-syed-day-thekhabarilaal/
विभाग के अध्यक्ष प्रो. एम.ए.झरगर ने स्वागत भाषण प्रस्तुत किया। राष्ट्रीय संगोष्ठी का परिचय डायरेक्टर डाॅ. ताहेर पठान ने किया। संगोष्ठी के समन्वयक प्रो. क्रान्ति पाल ने धन्यवाद् किया। इस अवसर पर डाॅ. ताहेर पठान की ’संत साहित्यः समाजसृष्टि व मूल्यदृष्टी’ पुस्तक का भी लोकार्पण हुआ। कार्यक्रम का संचालन डाॅ॰ शाकिर अहमद नायकू ने किया। अंत में जाॅनी फाॅस्टर ने तराना को मराठी, पंजाबी, कश्मीरी, हिन्दी, मलयालम, बंगाली आदि भाषाओं में प्रस्तुत कर सबका मन मोह लिया।